देशी गौवंश क्यों

भारत समृद्ध जैव-विविधता युक्त बड़ी देशी गौवंशीय आबादी वाला देश है। यहां गाय की 50 सुपरिभाषित नस्लें हैं। कठोर जलवायु परिस्थितियों में स्व-अनुकूलन के कारण जीवित रहना, खराब गुणवत्ता वाले आहार एवं चारे पर उत्पादन की योग्यता, रोगों के प्रति प्रतिरोधक दक्षता इत्यादि गुणों के कारण कई पीढ़ियों में इन नस्लों का विकास हुआ है। पारंपरिक, आर्थिक और धार्मिक महत्व के दृष्टिगत गाय को भारतीय संस्कृति की मूलाधार माना जाता है। वैदिक काल से ही गोवंश का कृषि एवं अन्य आर्थिक गतिविधियॉ, सामाजिक, धार्मिक एवं औषधीय आवश्यकताओं के लिए पालन-पोषण किया जाता रहा है।

देशी गोवंश में रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी अधिक है तथा ये देश की जलवायु के दृष्टिगत उपयुक्त हैं।

देशी गोवंश के रख रखाव व भरण-पोषण पर विदेशी गोवंश से अपेक्षाकृत कम व्ययभार आता है।

देशी गौवंश कम गुणवत्ता वाला चारा पचा कर अधिक दूध देती हैं।

देशी गाय के दुग्ध में संयुग्मित लिनोलिक एसिड, ओमेगा-3 फैटी एसिड और सेरेब्रोसाइड जैसे कुछ उपयोगी घटकों का उच्च स्तर होता है।

इसके अतिरिक्त गाय के दूध, दही, घी, मूत्र और गोबर का उपयोग पंचगव्य बनाने में किया जाता है। पंचगव्य रोगाणुरोधी गुण होने के कारण शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता को बढाकर शारीरिक संतुलन बनाये रखता है।

स्वदेशी गायों के गाय का गोबर सूक्ष्म वनस्पतियों का एक समृद्ध स्रोत है जिसे प्रोबायोटिक्स के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त गो मूत्र (स्वदेशी नस्ल के) का उपयोग कृषि में जैव कीटनाशक, उपज बढ़ाने एवं मिट्टी को उपजाऊ बनाने के आलावा, रोगों को ठीक करने में, मच्छरों को नियंत्रित करने, कीटाणुशोधन एवं मछली के भोजन के रूप में किया जा सकता है।

इसी तरह गाय के गोबर का उपयोग किण्वन एवं गैसीकरण प्रक्रियाओं के माध्यम से उर्जा उत्पादन में किया जाता है।

कान्हा गौशाला

कान्हा गौशाला को निराश्रित, परित्यक्त, दिव्यांग एवं दुर्बल गौवंश के कल्याण, आश्रय, सुरक्षा एवं पुनर्वास हेतु स्थापित किया गया है। कान्हा गौशाला में गौवंशों को सुरक्षित वातावरण के साथ ही संतुलित आहार अर्थात् भूसा एवं हरे चारे के साथ-साथ सेंधा नमक गुड़ एवं स्वच्छ पेयजल इत्यादि दिये जाते हैं। उक्त के अतिरिक्त गौवंशों का नियमित रूप से स्वास्थ्य परीक्षण, चिकित्सा, कृमिनाशक, दवापान, टीकाकरण इत्यादि किये जाते हैं।

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